श्रध्येय श्रीमान गुरूजी,

श्रध्येय श्रीमान गुरूजी,
आपका सन्देश / सूचना प्राप्त हुआ.. ..आपका आभार / धन्यवाद…मेरे उद्देश्य आपने शायद मेरे ब्लॉग पर ठीक/ ध्यान से देख/ पढ़ नहीं होगा….में तो इस वैदिक विद्या का ठीक/ सही प्रचार -प्रसार हेतु कार्यरत हु….ताकि अन्धविश्वास और भ्रांतियों से आम जन को अवगत करवाया जा सके…
आपके आशीर्वाद और ईश्वर कृपा से मुझे नाम-दाम -काम की कोई लालसा/ इच्छा/ भावना नहीं हे…मेने तो अपना सर्वस्व इस समाज-को -आमजन को समर्पित कर दिया हे..35 दफा रक्तदान तो किया ही हे…मेने अपना दिल/ आँखें/ किडनी .सभी दान करने का संकल्प लिया हे…
मुझे तो लगा था की आप खुश होंगे मेरे इस कार्य से..बड़ा दुःख हे मुझे..की आप जेसा महान व्यक्तित्व भी मेरी भावनाओं और विचारों को नहीं समझ पाया…यदि में आपके मिशन/ कार्यक्रम से जुड़ना चाहू तो क्या करना होगा,,…??
अपना अनुज/ शिष्य समझकर …कृपया मुझे क्षमा/ माफ़ कीजियेगा… में तो केवल एक माध्यम मात्र हु इस जानकारी को मानवमात्र…आमजन तक पहुँचाने का…
आपको हुई परेशानी..मानसिक/शारीरिक के लिए में अंतःकरण से क्षमाप्रार्थी….
आपका-अपना—
पंडित-दयानंद शास्त्री–09024390067
आपकी प्रतीक्षा में…फोन/इमेल…

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